ग़ज़ल

ग़ज़ल : जिस तर्ह वो मिला…

जिस तर्ह वो मिला, गले से भी लिपट गया
कब ये लगा कि दिल वो कभी था उचट गया.

उसने बयाँ की राय कुछ ऐसी कि ज़ीस्त ये
जाने कहाँ भटक गई, मैं भी सिमट गया.

जब राफ़ स़ाफ़ हो गये रिश्तों के पेंचोख़म
फिर भी लगा कि कुछ न कुछ इस दिल में घट गया.

बच्चे भी बैट-बॉल रख आये कहीं पे अब
मेरा भी स़ह्न देख दो हिस्सों में बट गया.

जो अब्तरी ए ज़ीस्त से उकता के डट गये
तक़्दीर मे जो सा़फ़ था लिख्खा पलट गया.

अब्तरी_बुरी दशा, स़ह्न_आँगन

___ Su’neel

ग़ज़ल

ग़ज़ल :साथ मेरे कभी…

साथ मेरे कभी रहो भी मियाँ
कुछ सुनाओ तो कुछ सुनो भी मियाँ.

चाँद बन जाओ या सितारे तुम
पर कभी तो फ़लक बनो भी मियाँ.

क्या है तुझमें,नहीं है क्या तुझमें
ये कभी ख़ुद से पूछ लो भी मियाँ.

तुम बहुत बोलते हो बढ़ चढ़कर
ये कमी दूर तुम करो भी मियाँ.

अब ये दारोमदार है तुम पर
तुम जहाँ हो वहाँ टिको भी मियाँ.

राय क़ाइम न दूर से करते
पहले सबसे मिलो जुलो भी मियाँ.

ज़िंदगी में कहाँ सुकून कभी
ठीक हीं है,चलो! है जो भी मियाँ.

__By su’neel

ग़ज़ल

ग़ज़ल : रिश्तों में जो थीं दरारें…

रिश्तों में जो थीं दरारें, भरने लगीं
पहले सा मैं, आप तब सी लगने लगीं.

चुप्पी सी थी इक ख़ला सा था बीच में
उम्मीद की वां शुआऐं दिखने लगीं.

अब ये जहाँ तेरी ज़़द में लगता है, लो!
आँचल में तेरे फ़िज़ाऐं छुपने लगीं.

जब फ़ासलों में पड़ीं थोड़ी सलबटें
ये क़ुर्बतें अपनी सब को खलने लगीं.

तू मेरी होगी, यकीं ये था क्योंकि इन
हाँथो में तुम सी लकीरें बनने लगीं.

किस जज्बे से तुम दुआएं करती हो वां
पहलू से अब यां बलायेें टलने लगीं.
__By su’neel

ग़ज़ल

ग़ज़ल : है शाद दिल ये बहुत…

है शाद दिल ये बहुत, पास पर सुबू ही नहीं
बगै़र मय के रगों में लगे लहू ही नहीं.

अब इश्क़ है तो ज़माने की देख ज़ू़दरसी
वो राज़ जान गया जिसपे गुफ़्तगू ही नहीं.

तुम्हारे शह्र में इक ऐब दिख रहा है मुझे
कि यां तो कू ए सनम सा कोई भी कू ही नहीं.

हजा़र लफ्ज़ हैं उल्फ़त के इस फ़साने में
अ़जीब ये कि कहीं लफ्ज़ ‘आरजू ही नहीं.

दो चार गाम पे मंज़िल मिली है किसको यहाँ
मेरे हिसाब से तुमने की जुस्तुजू ही नहीं.

__By su’neel

ज़ूदरसी – तह तक जाना
सुबू – शराब आदि का मटका
कू-गली, गाम-कदम

ग़ज़ल

ग़ज़ल: यूँ ख़फ़ा भी…

यूँ ख़फ़ा भी कहाँ थे तब हम पर
तुम बहुत जाँ फ़िशाँ थे तब हम पर.

उन दिनों खेलते थे तारों से
तुम हुए आस्मां थे तब हम पर.

मन मुताबिक़ जहाँ में जी लेंगे
त़ारी कितने गुमां थे तब हम पर.

याद आई गली वो रूस्वाई
चीखते सब दहां थे तब हम पर.

हम तरद्दुद न इश्क़ के माने
वो जुनूं,हाँ जी हाँ थे तब हम पर.
__su’neel

ग़ज़ल

ग़ज़ल :आसान राहों पे ले आती है…

आसान राहों पे ले आती है मुझे
उसकी दुआ है, लग हीं जाती है मुझे.

ये शोर दिन का चैन लूटे है मेरा
औ’ रात की चुप्पी जगाती है मुझे.

किस किस को रोकूं कौन सुनता है मेरी
ये भीङ पागल जो बताती है मुझे.

कूचे में जो मज्कूर है उस्से अलग
दहलीज़ तो कुछ औ’ सुनाती है मुझे.

पहलू में मेरे बैठी है मुँह मोङ कर
ये ज़िन्दगी यूँ आजमाती है मुझे.

___Su’neel

ग़ज़ल

ग़ज़ल:कुछ हरी हैं कुछ हैं पीली…

कुछ हरी हैं कुछ हैं पीली कुछ हैं नीली तितलियाँ
कुछ तो इनमें हू ब हू दिखती हैं तुम सी तितलियाँ.

हम पकड़ लाते थे जो बचपन में जंगल से कभी
इन लबों की तितलियों सी थीं वो सारी तितलियाँ.

ये सुनहरी धूप औ’ ठंढी दिसम्बर की हवा
देखते बनतीं हैं ऐसे में ये प्यारी तितलियाँ.

झूमने बच्चे लगे हैं झुरमुटों को देख कर
कुछ हैं टूटे पंख वाँ औ’ कुछ सुहानी तितलियाँ.

एक मुद्दत से चमन में तुम न आये हो मेरे
आ भी जाओ राह तकतीं हैं तुम्हारी तितलियाँ.

…. Su’neel

ग़ज़ल

ग़ज़ल : ये वादियाँ ये चमन…

ये वादियाँ,ये चमन,औ सफेद झरने का
है लुत्फ़ ख़ूब तेरी ज़ीस्त में उतरने का.

ख़ुनुक फ़ज़़ा है बिछाओ तो लाॅन में चादर
ये वक़्त,धूप में हीं गुफ़्तगू है करने का.

मैं बार-बार हीं नाकामयाब होता हूँ
मगर हुआ न कभी तज़्रिबा बिखरने का.

ये सरगुज़श्त है दिल टूटने बिखरने की
सुने वही, है हुनर जिसमें आह भरने का

मैं मुंतजिर था चमन में कि अब खिलेंगे गुल
पयाम आया बहारों के पर मुकरने का.

उठा रही हैं सरें ताक़तें कुछ ऐसी आज
ऐ अहले हिन्द डरो वक़्त आया डरने का.

__सुनील “नील”

ग़ज़ल

ग़ज़ल:आबोगिल राह के पत्थर…

आबोगिल राह के पत्थर नहीं देखे जाते
राहे मंजिल में नौ मंजर नहीं देखे जाते.

शौके शुह्रत है तेरे दिल में तो इसमें जानो
पुरसुकूं नींद ये बिस्तर नहीं देखे जाते.

सांस लेतीं हैं ये दीवारें अभी तोड़ो मत
टूटते पुरखों के ये घर नहीं देखे जाते.

ऊब के आ हीं गया हद पे जहाँ की, देखो!
मुझसे दुनिया के ये तेवर नहीं देखे जाते.

ग़म ये उल्फ़त का है, मेरा है, मैं हीं देखूंगा
पूछूँ क्यों उनसे ये क्योंकर नहीं देखे जाते.

नक्हते मय से हीं मैं मस्त हुआ, मुझसे अब
कुछ भी मयखाने में दीगर नहीं देखे जाते.

__सुनील “नील”

ग़ज़ल

बात उतनी कहां पुरानी थी

ग़ज़ल

बात उतनी कहां पुरानी थी
मिलते हीं याद तब की आनी थी.

फ़र्क़ इतना दिखा मुझे यारो
अाज पीरी है तब जवानी थी.

वो दिखा हीं न ज़िन्दगी जीते
ज़िन्दगी उसकी बस ज़ुबानी थी.

बेवफ़ा हो के रात भर रोया
बेबसी उसकी क्या कहानी थी.

आज दरिया-ए-चश्म में उसके
थोड़े पानी में क्या रवानी थी!

____सुनील “नील”