जिस तर्ह वो मिला, गले से भी लिपट गया
कब ये लगा कि दिल वो कभी था उचट गया.
उसने बयाँ की राय कुछ ऐसी कि ज़ीस्त ये
जाने कहाँ भटक गई, मैं भी सिमट गया.
जब राफ़ स़ाफ़ हो गये रिश्तों के पेंचोख़म
फिर भी लगा कि कुछ न कुछ इस दिल में घट गया.
बच्चे भी बैट-बॉल रख आये कहीं पे अब
मेरा भी स़ह्न देख दो हिस्सों में बट गया.
जो अब्तरी ए ज़ीस्त से उकता के डट गये
तक़्दीर मे जो सा़फ़ था लिख्खा पलट गया.
अब्तरी_बुरी दशा, स़ह्न_आँगन
___ Su’neel